व्यंग – हम अंधे जो ठहरे
धुर्त लोग शासन कर रहे है !
राजा के द्वार पर पहुँचा.
राजा को दया आ गयी.
राजा ने प्रधानमंत्री से कहा ~
यह भिक्षुक जन्मान्ध नहीं है,
यह ठीक हो सकता है,
इसे राजवैद्य के पास ले चलो.
मंत्री राजा से कहता है ~ महाराज !
यह भिक्षुक शरीर से हृष्ट-पुष्ट है,
यदि इसकी रोशनी लौट आयी, तो इसे
👉 आपका सारा भृष्टाचार दिखेगा.
आपकी शानो-शौकत और
फिजूलखर्ची दिखेगी.
आपके राजमहल की विलासिता
और रनिवास का अथाह खर्च दिखेगा.
इसे यह भी दिखेगा कि …
जनता भूख और प्यास से तड़प रही है,
सूखे से अनाज का उत्पादन
हुआ ही नहीं, और
आपके सैनिक पहले से …
चौगुना लगान वसूल रहे हैं.
शाही खर्चे में बढ़ोत्तरी के कारण
राजकोष रिक्त हो रहा है,
जिसकी भरपाई हम सेना में
कटौती करके कर रहे हैं.
इससे हजारों सैनिक और कर्मचारी
बेरोजगार हो गए हैं.
ठीक होने पर यह भी
औरों की तरह ही
रोजगार की माँग करेगा, और
आपका ही विरोधी बन जायेगा.
मेरी मानिये तो …
यह आपसे मात्र दो वक्त का
भोजन ही तो माँग रहा है.
इसे आप राजमहल में बैठाकर
मुफ्त में सुबह-शाम
भोजन कराइये,
और दिन भर इसे …
👉 घूमने के लिए छोड़ दीजिये.
ये पूरे राज्य में आपका
गुणगान करता फिरेगा, कि …
राजा बहुत न्यायी हैं,
बहुत ही दयावान और
परोपकारी हैं.
इस तरह मुफ्त में खिलाने से …
आपका संकट कम होगा, और आप
लंबे समय तक शासन कर सकेंगे.
राजा को यह बात …
समझ में आ गयी.
वे वापस अंधे के पास गये, और
दोनों उसे उठाकर राजमहल ले आये.
अब वो अंधा पूरे राज्य में
राजा का गुणगान करता फिरता है.
उसे यह नहीं पता कि
राजा ने उसके साथ
धूर्तता की है, छल किया है.
वह ठीक होकर स्वयं कमा कर
अपनी आँखों से
संसार का आनंद ले सकता था.
👇
यही हाल सरकारें करती हैं.
हमें मुफ्त का लालच देती हैं, किंतु ….
‘आँखों की रोशनी’ यानी ..
★ अच्छी शिक्षा व रोजगार नहीं देतीं,
जिससे कि हम उनका
भ्रष्टाचार देख पाएं,
उनकी फिजूलखर्जी और
गुंडागर्दी देख पाएं,
उनका शोषण और अन्याय देख पाएं.
और हम अंधे की तरह …
उनका गुणगान करते हैं, कि
राजा मुफ्त में सबको सामान देते हैं.
हम यह नहीं सोचते कि …
यदि हमें अच्छी शिक्षा और रोजगार
सरकारें दें, तो हमें उनकी खैरात की
जरूरत न होगी,
हम स्वतः ही सब खरीद सकते हैं.
पर हम सभी ~ अंधे जो ठहरे.
केवल मुफ्त की चीजें ही
हमें दिखती हैं.
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