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कहानी – मुनमुन

*मुनमुन*

( निर्मलदास मानकर)

आज सुबह जब मैं कुछ चहल कदमी कर रहा था तभी मेरी निगाहें अचानक ठिठक गई एक गलहरी का मासूम बच्चा दिवार किनारे बैठा था.  हमारे घर में स्वच्छ भारत अभियान याने घर में झाडू साफ सफाई का काम चल रहा धा मैं चन्द क्षणों के लिए घर में दूसरे कमरे में चला आया था फिर कुछ फालतू काम किया फिर मुझे गिलहरी के मासूम बच्चे का ख्याल आया तो मैने आकर देखा वह कही दिखाई नहीं दिया जब मैने पूछा तो मेरी मॉ से पूछा यहॉ गिलहरी का बच्चा था कहॉ गया? मे ने कहा यहॉ तो कचरा पडा समझकर दिवार के पीछे डस्ट बीन मे मैने डाल दिया मैने मॉ से कहॉ यहॉ गिलहरी का बच्चा था मेरी मॉ ने तुरंत जाकर डस्टबिन में देखा तो फिर मां ने उसे फिर शांति से निकाल कर घर में ले लाई फिर उसे प्यार से पहले पानी पिलाने का काम करके उस मासूम गिलहरी से बात करने लगी हम सभी भाई बहनो ने इस आगन्तुक मासूम नन्हें मेहमान का बडे हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया. सबसे छोटे भाई ने तो गिलहरी के मासूम बच्चे का नामांकरण  “मुनमुन” के  प्यारे से इस नाम से कर दिया था उन दिनों हमारे परिवार में बहुत खुशीयों का माहौल मुनमुन के रहने से हो गया था. सच पुछो तो इस प्राकृतिक  धरातल को बनाने वाले के नाम के बाद हम सभी की जुबांन पर अगर किसी का नाम आता है तो वह “मुनमुन” का ही तो प्यारा सा नाम हमेशा से ऱहता.

.मुनमुन को हमारे परिवार में दो गज दूरी बनाकर रहना पसन्द था उसे दरवाजे खिड़कियों के सहारे दिवारो पर दौड़ना उछल कूद करना तो और भी ज्यादा पसन्द था. मुनमुन जब हमें कुछ खाते देखती तो वह तुरंत करीब आकर बैठ जाती और बडे मासूमियत से दोनों हाथों में थामकर खाना शुरू करने लगती.

चन्द दिनों में ही मेरी मॉं और मुनमुन की गहरी दोस्ती हो गई थी. मुनमुन को आंगन में बैठना जाम के पेड़ की डालियों पर उछल कूद करना जाम के फलों को कुतरते हुऐ न्युट्रिशन युक्त सुबह दोपहर का भोजन करना अतिप्रिय लगता था.

आज सुबह से मॉ और मुनमुन आंगन में खेल रहे थे मॉ ने मुनमुन  को जाम के पेड़ की अधिक ऊँचाई की शाखाओं पर जाने से रोका.

– ” मुनमुन नीचे आओ गिर जाओगी तुम ”

मुनमुन और ऊँचाई की शाखाओं पर जाकर बैठ गई. मुनमुन तुम बड़ी हो गई हो मेरी बात नहीं सुनती हो “मुनमुन पेड की पत्तियों के बीच की शाखाओं से नीचे उतरने लगी फिर मॉ ने कहा चलो घर चले वह पुन: जाम की शाखाओं पर चढ़कर पत्तो के बीच चुपके से बैठ गई मॉ ने बहुत बुलाया पर मुनमुन को आज नीला आसमान और उमडते घुमड़ते श्वेत बादल और आसमान पर उडते परिन्दें अतिप्रिय लग रहे थे.

मेरी मॉ ने पुन: गुनगुन से कहा

-‘मुनमुन तुम अब बडी हो गई हो मेरा कहना नहीं सुनती हो न मै तुमसे बात नहीं करूंगी ” कुछ पल के लिए मुनमुन ने मेरी मॉ की बात सुनी वह जाम के पेड़ की शाखा से फिर नीचे उतरने लगी और फिर बैठ गई. मेरी मॉ के बुलाने पर भी मुनमुन नहीं आई तो मॉ घर में आकर वर्क फ्राम होम करने लगी.फिर मुनमुन को देखने आंगन में आ गई

– “मुनमुन ” “मुनमुन” “मुनमुन”

“कहॉ हो मुनमुन ?”

बहुत देर हो चूकी थी मुनमुन आस-पास ढूढ़ने पर कहीं भी नहीं मिली. दूसरे दिन फिर तीसरे दिन भी मुनमुन वापस नहीं आई तभी निशा ने बताया कि दो दिन पहले एक काले रंग की बिल्ली ने अपने मुंह में पकड़ कर बाहर गिलहरी के मासूम बच्चे को ले जा रही थी. उसने बतायी की दोपहर ग्यारहा बजें के लगभग समय रहा होगा.

मुनमुन को हम सभी आज भी बरसो बीतने के बाद भी याद करते हैं.

मैं एक सप्ताह बाद छिन्दवाडा से भोपाल वापस आया तो भाई ने बताया कि अपने घर की मुन्डेर की सीढ़ियां के माध्य एक परिन्दी पन्छी ने फिर घोसला बना लिया है .जब मैंने देखा तो चिडियॉ ने अपने घोसले में दो अंडे दे रखे थे और वह मेरी ओर असुरक्षित होने के भय से देख रही थी.मैने कुछ दिनों में यह महसूस किया कि यह चिड़िया  दिन रात अपने अंडों का बहुत ध्यान रखती है गर्मी के दिनों में तेज धूप हवॉ और मौसम के ख़राब होने की वजह से आये दिन पानी में कभी भी बादल बरस पड़ता था मेरा भाई परिन्दे के घोसले को हर्बालाईफ के खाली खड्डे से और प्लास्टिक के पन्नियों से मजबूत करके रिपेयर कर देता था मैं और कुछ दाना पानी अक्सर रख देता था मैं भी खुश हूँ क्योंकि नन्हें परिन्दें मेहमान का फिर आंगमन होने वाला है.शायद यही वजह से मुझे मुनमुन की यादें फिर से तरोताजा कर रही है दोस्तों बस इतनी सी थी मुनमुन की कहानी

निर्मल

7354089988’मुनमुन’ कहानी