प्रशासन की छापामारी कार्रवाई नौटंकी-
कोयला माफिया पर प्रषासन की कमजोर पकड़
दांडिक कार्यवाही से कोसो दूर खनिज माफिया
बैतूल। मप्र राज्य। खनिज अपराध फलफूल रहा हैं तो उसका कारण खान एवं खनिज अधिनियम 1957 की कमजोरी रहीं हैं। अधिनियम में खनिज का अवैध उत्खन्न अपराध तो हैं लेकिन राजस्व वसूली तक सीमित है। कोयला माफिया 1000 टन का अवैध उत्खन्न करता हैं लेकिन जब पकड़ाता हैं तब 100 टन का राजस्व जमा करके पुनः मुक्त हो जाता हैं। बाकी 900 टन का लाभ खनिज अधिकारी, पुलिस एवं राजस्व विभाग के साथ मिल बैठ कर बांट लिया जाता हैं। अवैध खदानों से कुल कितना कोयला अब तक निकाला जा चुका हैं, खनिज विभाग को कुछ पता नहीं हैं। भारत सरकार एवं मप्र राज्य सरकार को राजस्व क्षति की जानकारी नहीं दी गई हैं। बैतूल जिले के घोड़ाड़ोगरी तहसील के 5 गांव के आदिवासी मजदूरो के रोजगार का साधन तो कोयले का अवैध उत्खन्न करना हैं। प्रतिदिन 40 डम्पर कोयला निकाला जाता हैं, रात्री में परिवहन किया जाता हैं जो कि दूसरे जिले एवं राज्यों के औघोगिक क्षेत्रों तक पहुंचता हैं लेकिन पकड़ता कही पर भी नहीं हैं। कोयला माफिया का प्रबंधन ही कुछ एैसा हैं कि साल में एक बार ट्रैक्टर ट्राली एवं कुछ 2-4 डम्पर पकड़वाए जाते हैं जो कि बाद में छूट जाते हैं। मिली भगत का ही नतीजा हैं कि मामला वाहन स्वामी एवं वाहन चालक तक सीमित रहता हैं। कोयला माफिया तो प्रबंधक की भूमिका में रहता हैं जो कि प्रषासनिक अधिकारियों का प्रबंधन करता हैं। अनुविभागीय राजस्व अधिकारी अनिल सोनी के नेतृत्व में कोयला अवैध उत्खन्न की जांच के लिए गठित दल द्वारा सीमित जांच की गई हैं जिसकी भनक पहले से खनिज माफिया को थी। रंगमंच की पटकथा की तरह कुछ जप्तियां बनाई गई हैं। खनिज अपराध संज्ञेय अपराध हैं लेकिन वास्तविक अपराधियों की कोई गिरफ्तारी नहीं हुई हैं। खान एवं खनिज अधिनियम 1957 की धारा 21 (1), भारतीय दण्ड विधान की धारा 379, भूराजस्व संहिता की धारा 247, सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण कानून 1984 के तहत खनिज माफियां के विरूद्ध अपराध दर्ज नहीं किए गए हैं। खनिज माफियां अब भी कानून की पकड़ से दूर हैं।कोयला माफिया पर प्रषासन की कमजोर पकड़ दांडिक कार्यवाही से कोसो दूर खनिज माफिया है।